Jaipur: जयपुर मेट्रो 3 जून 2022 को अपने संचालन के 7 साल पूरे कर लेगी. जयपुर मेट्रो का 7 साल का सफर ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहा है. मानसरोवर से चांदपोल के बीच संचालन शुरू होने के बाद से अब तक मेट्रो में सफर करने वालों की तादाद लगातार घट रही है और घाटा बढ़ रहा है. जयपुर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट बनाने के बाद भले ही जयपुर देश की चुनिन्दा मेट्रो सिटी में शामिल हो गया हो लेकिन उसका जनता को कोई खासा लाभ नहीं मिला. ये मेट्रो अब पब्लिक के लिए न तो फायदे का सौदा साबित हुई और न ही सरकार के लिए. पिछले 5 साल में मेट्रो को चलाने पर सरकार को अपनी जेब से 181 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्चा और करना पड़ गया. जयपुर मेट्रो के प्रति राजधानी वासियों का क्रेज लगातार कम होता जा रहा है. कम यात्री भार के चलते राजस्व का घाटा भी बढता जा रहा है. महीने दर महीने जयपुर मेट्रो में यात्रियों की संख्या में गिरावट जारी है. पिछले 5 साल (वित्तवर्ष 2016-17 से 2020-21) तक के ऑपरेशन और मेंटेनेंस (संचालन और रखरखाव) पर जितना खर्च करना पड़ा, उस खर्चे का 30 फीसदी भी रेवेन्यू नहीं मिला है. इन 5 साल में सरकार ने मेट्रो के संचालन पर 257.62 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्चा कर दिया लेकिन सरकार को इससे रेवेन्यू केवल 76.09 करोड़ रुपये ही मिला है. बता दें कि जयपुर मेट्रो के मानसरोवर से बड़ी चौपड़ तक के रूट को बनाने में सरकार ने 3105 करोड़ 54 लाख रुपये से ज्यादा की राशि खर्च करनी पड़ी. नॉन कोविड पीरियड में मेट्रो को हर साल औसतन 19 से 21 करोड़ रुपये के बीच रेवेन्यू मिल रहा था. अप्रैल 2020 में कोविड आने और उसके बाद लॉकडाउन लगने से मेट्रो ट्रेन का संचालन और लोगों का आवागमन बंद हो गया. इस कारण मेट्रो का ये घाटा 2020-21 में सबसे ज्यादा रहा. इस पूरे वित्त वर्ष में मेट्रो के संचालन और अन्य रेवेन्यू सोर्स से कुल 6.31 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि इस साल खर्चा 57.57 करोड़ रुपये हुआ.
ये पिछले वित्त वर्ष से 4 करोड़ रुपये ज्यादा था. वर्तमान में जो रूट है, वह मानसरोवर में किसान धर्मकांटे (गोपालपुरा बाइपास) से गुर्जर की थड़ी, न्यू सांगानेर रोड, अजमेर रोड, सिविल लाइन्स, अजमेर पुलिया, जयपुर जंक्शन, सिंधी कैंप, चांदपोल होते हुए बड़ी चौपड़ तक बना है. इस रूट पर वर्तमान में पब्लिक का तो मूवमेंट है लेकिन यहां लोगों को आसानी से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के दूसरे संसाधन जैसे मैजिक, ई-रिक्शा, मिनी बस, लो फ्लोर बस मिल जाती हैं. इसमें किराया मेट्रो ट्रेन के समान ही पड़ता है. ऐसे में यात्री को मेट्रो स्टेशन पर चढ़ने-उतरने, स्टेशन बाहर निकले और मेट्रो ट्रेन का इंतजार करने में जितना समय लगता है, उतने समय में वह दूसरे संसाधन से अपनी जगह तक पहुंच जाता है.
बहरहाल, राजधानी में सड़कों पर भार कम करने और लोगों के अच्छे के लिए मेट्रो का निर्माण किया गया था. एक उद्देश्य ये भी था कि वो ऑटो और टेम्पो का व्यवहारिक विकल्प बने लेकिन आज भी शहर के 80 प्रतिशत लोग ऑटो टेम्पो और निजी वाहनों, ई-रिक्शा का इस्तेमाल कर रहे हैं.