शहर के समस्त जैन मंदिरों में माघ बदी चौदस मंगलवार को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के निर्वाण दिवस भक्तिभाव से मनाया गया। इस पावन अवसर पर प्रातःकाल विशेष अभिषेक , पूजा विधान आयोजित किए गए । मीडिया प्रभारी विवेक पाटोदी ने बताया कि इस अवसर पर शहर के बजाज रोड़ स्थित दंग की नसियां मंदिर एवं नया मंदिर सहित समस्त जैन मंदिरों में आदिनाथ विधान का आयोजन किया गया ।
अतिशय क्षेत्र रैवासा प्रबंध समिति अध्यक्ष महावीर ठोल्या एवं महामंत्री सुनील बड़जात्या ने बताया कि ग्राम रैवासा स्थित श्री दिगंबर जैन भव्योंदय अतिशय क्षेत्र में संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के धर्म प्रभावक शिष्य निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मुख्य मंदिर जी में विराजित मूलनायक देवाधिदेव 1008 श्री आदिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक (निर्वाण) महोत्सव भक्तिभाव से मनाया गया । कार्याध्यक्ष देवेंद्र छाबड़ा व निर्माण मंत्री पंकज दुधवा ने बताया कि प्रातःकाल भगवान ऋषभदेव के विशेष अभिषेक एवं वृहद शांतिधारा हुई । इसके पश्चात मुख्य आयोजन में सर्वप्रथम ध्वजारोहण होगा , तत्पश्चात आदिनाथ विधान मण्डल पूजन का आयोजन किया गया , जिसमें सीकर व आसपास के क्षेत्रों से जैन धर्मावलंबी सम्मिलित हुए ।
विधान का पुण्यार्जन सीकर निवासी कोलकाता प्रवासी पवन कुमार प्रेमलता देवी मोदी परिवार को प्राप्त हुआ। प्रबंध समिति के विकास लुहाड़िया व संजय बड़जात्या ने बताया कि विधान पूजन पश्चात भगवान आदिनाथ को निर्वाण लाडू समर्पित किया गया । मुख्य निर्वाण लाडू समर्पित करने का सौभाग्य चिरंजीलाल , सुजीत कुमार , नवीन कुमार , सम्यक , नमन गोधा परिवार, फतेहपुर सीकर को प्राप्त हुआ । छत्र एवं महाआरती पश्चात कार्यक्रम का समापन हुआ । सांयकालीन वात्सल्य भोजन का पुण्यार्जन पदम चंद ,नवीन कुमार साहिल , वरुण कुमार जैन परिवार जयपुर को प्राप्त हुआ। मीडिया प्रभारी विवेक पाटोदी ने बताया कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदियोगी, षट्कर्म के उपदेशक, युग निर्माता, आदिब्रह्मा , परम उपकारी देवाधिदेव भगवान ऋषभदेव का मोक्ष कल्याणक महोत्सव मंगलवार को जैन धर्मावलंबियों द्वारा अत्यंत भक्तिभाव से मनाया गया ।
भगवान आदिनाथ जिन्हें ऋषभनाथ, आदिश्वर, वृषभनाथ आदि नामों से भी जानते है। उनका जन्म तृतीय काल के अंत में शाश्वत नगरी अयोध्या में हुआ था। वे अंतिम कुलकर राजा नभिराय – मरुदेवी के पुत्र थे। कल्प वृक्षों के लुप्त होने के पश्चात आज से असंख्यात वर्ष पूर्व उन्होंने ही षटकर्म असि (सैनिक कार्य) मसि (लेखन कार्य) कृषि (खेती) विद्या (अक्षर-अंक) शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य (व्यापार) का ज्ञान समूचे विश्व को प्रदान किया और अहिंसा का मूल मंत्र दिया। उन्होंने भरत क्षेत्र, आर्य खंड के कैलाश पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया । भगवान आदिनाथ के पुत्र चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा ।