अब इस चिड़िया का अंडा बताएगा राजस्थान में कब आएगा मानसून
दुर्लभ होती जा रही बया प्रजाति की चिड़िया इस चिडिया को भी शायद अंदाजा था कि जिले में इस बार मानसून देरी से आएगा. तभी तो इनके घोंसले अब जाकर तैयार हुए हैं. स्थानीय लोग इसे बुनकर पक्षी भी कहते हैं.
Jalore: दुर्लभ होती जा रही बया प्रजाति की चिड़िया इस चिडिया को भी शायद अंदाजा था कि जिले में इस बार मानसून देरी से आएगा. तभी तो इनके घोंसले अब जाकर तैयार हुए हैं. स्थानीय लोग इसे बुनकर पक्षी भी कहते हैं. यह छोटे-छोटे घास के तिनकों और पत्तियों से बुनकर लालटेन की तरह लटकता हुआ अनोखा घोंसला बनाती हैं. सायला उपखंड क्षेत्र के लुंबा की ढाणी समेत आसपास के गांव में मानसून के समय पक्षी द्वारा बनाया जा रहा है, जो किसी कलाकृति से कम नहीं हैं.
घोंसले में अंडों को रखने के लिए एक बड़ा गोलाकार स्थान होता है. नीचे की ओर एक ट्यूब की तरह निकलने का रास्ता होता है. इसे पत्तियों और घास के लंबे तिनकों से बनाती है. एक घोंसला बनाने के लिए करीब एक हजार बार उड़कर लंबी घास और पत्तियां लाती हैं. चोंच से तिनकों और लंबी घास को चोंच से बुन देती है. घोंसला बनने में लगभग एक माह लगता है. बया का प्रजनन काल मानसून के दौरान होता है.
जानकर बताते हैं कि यह बया प्रजाति की चिड़िया देशभर में पाई जाती है, जो मानसून के समय प्रजनन करती है. इसका घोंसला नर बया बनाता है जो काफी मजबूत होता है. मानसून की आहट के साथ यह चिड़िया घोंसला बनाना शुरू करती है. बया यह घोंसला पानी वाले स्थान के आसपास बनाती है. बया के घोंसले को छोड़ देने के बाद इसे दूसरे पक्षियों के द्वारा उपयोग कर लिया जाता है. जानकार व किसान शंभूसिंह ने बताया कि कृषि बेरे पर 20 से 25 बया पक्षी अपना घोंसला बना रहे हैं.
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