आखिर क्या वजह है सिम कार्ड के एक कोने से कटे होने की, जाने अहम वजह

क्या आपने कभी सोचा है सिम कार्ड एक कोने से क्यों कटा होता है, आखिर क्यो कटने लगे सीम कार्ड? आइए इसकी अहम वजह बताते है.

आज के समय में आपको हर कोई मोबाइल फोन इस्तेमाल करता दिख जाएगा, शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा, जो मोबाइल का इस्तेमाल ना करता हो. बच्चे, जवान और बूढ़े सब मोबाइल का यूज करते है कई घंटो तक मोबाइल मे लगे रहते है. बिना सिम कार्ड के आपका फोन मात्र एक डिब्बे के बराबर है. इसलिए फोन का इस्तेमाल करने के लिए सिम कार्ड का होना अनिवार्य हैं. मोबाइल चलाने के लिए उसमे लगने वाला सिम कार्ड सबसे अहम चीज है.

आपने अब तक कई कंपनियों के सिम कार्ड देखे होंगे, लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि आखिर सिम कार्ड एक कोने से क्यों कटा होता है या फिर उसके एक कोने पर कट किस कारण से लगाया जाता है? अगर नहीं, आइये आज हम आपको इसके पीछे की अहम वजह के बारे में बताते हैं. ऐसा नहीं है कि केवल अपने देश भारत में ही सिम कार्ड साइड में से कटे होते हैं बल्कि दुनिया भर में इसी प्रकार के सिम कार्ड बेचे जाते हैं.

आज के समय में पूरी दुनिया में कई तरह की टेलीकॉम कंपनियां हैं, जो भारी मात्रा में सिम कार्ड बनाती हैं. शुरुआती समय में जो सिम कार्ड बनाए जाते थे, वो साइड से कटे हुए नहीं होते थे. उनका डिजाइन बेहद नॉर्मल और आयत आकार का हुआ करता था. ऐसे में लोगों को कई बार यह समझने में काफी दिक्कत होती थी की सिम का सीधा हिस्सा कौन सा है और उल्टा हिस्सा कौन सा है.

कुछ लोग तो सिम का सीधा और उल्टा हिस्सा ना पहचान पाने की वजह से उसे अपने मोबाईल फोन में उल्टा ही लगा दिया करते थे. इसके बाद नेटवर्क ना आने पर सिम को दोबारा निकालने में भी काफी परेशानी होती थी. यहां तक की कई बार सिम की चिप भी खराब हो जाती थी. ऐसे में लोगों की इस परेशानी को दूर करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों ने सिम के आकार में बदलाव करने का निर्णय लिया.

कंपनियों ने सिम कार्ड में बदलाव करते हुए उसके एक साइड को काट दिया. इस कट के लगने के बाद लोगों को मोबाइल फोन में सिम कार्ड डालने और निकालने में आसानी होने लगी क्योंकि मोबाइल फोन में भी सिम कार्ड के स्लॉट में वो कट दिखाया. अब कोई भी सिम कार्ड को आसानी से फोन में डाल सकता है. लोगों को मिलने वाली सुविधा को देखते हुए सभी टेलीकॉम कंपंनियों ने सिम कार्ड को एक कोने से काटने लग गई.

 

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