दुनिया की 80% आबादी रात के अंधेरे में लाइट पॉल्यूशन की जद में है. त्योहारों पर रोशनी से जगमगाता शहर या बाजारों में चकाचौंध करती तेज रोशनी अच्छी लगती है, लेकिन ये डायबिटीज की बीमारी भी दे रही है. हर तरह की आर्टिफिशियल लाइट, मोबाइल-लैपटॉप जैसे गैजेट्स, शोरूम्स के बाहर लगी एलईडी, कार की हेडलाइट या फिर होर्डिंग्स की आकर्षित करती तेज रोशनी भी आपको डायबिटीज का शिकार बना सकती है.
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जो लोग हर वक्त आर्टिफिशियल लाइट्स के संपर्क में रहते हैं, उनके शरीर का ग्लूकोज लेवल बिना कुछ खाए ही बढ़ने लगता है. इससे हमारे शरीर में बीटा सेल्स की सक्रियता कम हो जाती है. इस सेल की सक्रियता की वजह से ही पैंक्रियाज से इंसुलिन हॉर्मोन रिलीज होता है. आर्टिफिशियल लाइट का अधिकतम संपर्क सारी दुनिया के आधुनिक समाज की समस्या है और यह डायबिटीज होने की एक और बड़ी वजह बन गया है.
अमेरिका और यूरोप के 99% लोग लाइट प्रदूषण वाले आसमान के नीचे रहते हैं. धरती का 24 घंटे का दिन-रात का क्लॉक होता है. यह सूरज की रोशनी और अंधेरे से तय होता है। यह इस ग्रह पर रहने वाले हर जीव पर लागू होता है, लेकिन इंसानों ने इसमें छेड़छाड़ कर दी है. लाइट पॉल्यूशन की वजह से कीड़े-मकोड़ों, परिंदों और कई जानवरों का जीवन चक्र ही बदल गया है. इसमें समय से पहले ही इनकी मौत हो रही है और इससे दुनिया भर में जैव विविधता का भी बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है.
चीन में 1 लाख लोगों पर हुए शोध से पता चला है कि स्ट्रीट लाइट और स्मार्टफोन जैसी आर्टिफिशियल लाइट्स डायबिटीज की आशंका 25% तक बढ़ा सकती हैं. दरअसल, रात में भी दिन का एहसास कराने वाली ये रोशनी इंसानों के बॉडी क्लॉक को बदलने लगती हैं, जिससे शरीर के ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने की क्षमता कम होती जाती है. शंघाई के रुईजीन अस्पताल के डॉक्टर यूजू कहते हैं, दुनिया की 80% आबादी रात के अंधेरे में लाइट पॉल्यूशन की जद में है.
(दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों के आधार पर है, यह तरीका अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेवें. Shekhawati ab tak news इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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