तीज का त्योहार क्यों और कैसे मनाया जाता है, कब है हरियाली तीज ?
सावन का महीना शुरू हो गया है. इस महीने में हरियाली तीज आती है. हरियाली तीज का हिंदू धर्म में काफी महत्व होता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती है और सोलह श्रृंगार करती है.
सावन के महीने का इंतजार महिलाएं बेसब्री से करती हैं. इसके पीछे का कारण है इस महीने आने वाला तीज का त्योहार है. इस दौरान हर तरफ हरियाली छा जाती है और सुहावने मौसम में मन खुशियों से भर जाता है. इस तरह के माहौल में त्योहार मनाने का आनंद दोगुना हो जाता है. तीज के इस त्यौहार में महिलाएं मां पार्वती और भगवान शिव की अराधना करती हैं. ऐसी मान्यता है कि सुहागिनें अपनी शादीशुदा जिंदगी में भगवान का आशीर्वाद, पति की लंबी उम्र की कामना और सुख हासिल करने के लिए इस त्योहार को चाव से मनाती हैं.
हर साल तीज की तिथि चन्द्रमा के चक्र के आधार पर निश्चित की जाती है. उत्तर भारत से लेकर पश्चिमी भारत तक के कई राज्यों में इसे लोग उत्साह के साथ मनाते हैं. वहीं राजस्थान की राजधानी जयपुर में तो तीज के कुछ खास कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. वैसे तो इस महीने तीन दिन तीज मनाई जाती है, हरियाली तीज, सातुड़ी तीज और हरतालिका तीज. इन तीनों में से हरियाली तीज को लोग ज्यादा महत्व देेते हैं.
हरियाली तीज शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. हरियाली तीज आमतौर पर नाग पंचमी के दो दिन पहले आती है. इस साल हरियाली तीज का त्योहार 31 जुलाई 2022, रविवार के दिन मनाया जाएगा.
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था. तब उन्होंने शिव को पति के रूप में पाने की कामना की थीं. लेकिन तभी नारद मुनि राजा हिमालय से मिलने उनके पास गए और माता पार्वती से शादी के लिए भगवान विष्णु का नाम सुझाया. इससे हिमालयराज बहुत प्रसन्न हुए और पार्वती का विवाह विष्णु जी से कराने को तैयार हो गए.
जब माता पार्वती को ये पता चला कि उनका विवाह विष्णु भगवान से तय कर दिया गया है तो वो काफी निराश हो गईं. दुख में आकर वो एकांत जंगल में चली गईं. उन्होंने वहां रेत से शिवलिंग बनाया और महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए अनेक वर्षों तक कठोर तप किया था.उन्होंने तपस्या के दौरान अन्न जल त्याग दिया था. उस समय माता पार्वती सूखे पत्ते चबाकर अपना दिन व्यतीत करती थीं.
उस समय माता पार्वती के सामने कई तरह की चुनौतियां आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह नहीं की. जब गिरिराज को अचानक पार्वती जी के गुम होने की सूचना मिली तो उन्होंने उनकी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन वो नहीं मिलीं. उस समय माता पार्वती वन में एक गुफा के अंदर शिव की आराधना में लीन थीं.
आखिरकार माता पार्वती के तप के आगे शिवजी को विवश होना पड़ा और वो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करते हुए इच्छा पूर्ति का वरदान दे दिया. इसके बाद उनके पिता जब उन्हें ढूंढते हुए वन में पहुंचे तो पार्वती जी ने साथ जाने से इंकार कर दिया और एक शर्त रखी कि मैं आपके साथ तभी चलूंगी जब आप मेरा विवाह महादेव के साथ करेंगे. हारकर पर्वतराज को पुत्री पार्वती हठ माननी पड़ी और वे उन्हें घर वापस ले गए. कुछ समय बाद पूरे विधि-विधान के साथ शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ.
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