महादैत्य द्वारा मचाये गये हाहाकार को देखकर क्यूं गणपति ने धूम्रवर्ण अवतार लिया?

महादैत्य अहंतासुर द्वारा तीनों लोकों में कोहराम मचाने पर देवता, ऋषि.मुनि सब परेशान रहने लगे थे. सभी ने भगवान गणेश की कठोर साधना की, जिसके बाद गणपति ने धूम्रवर्ण अवतार लिया.

पौराणिक कथाओं के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताओं ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं. उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं. महादैत्य अहंतासुर द्वारा तीनों लोकों में कोहराम मचाने पर देवता, ऋषि.मुनि सब परेशान रहने लगे थे. सभी ने भगवान गणेश की कठोर साधना की, जिसके बाद गणपति ने आठवें अवतार धूम्रवर्ण लिया. भगवान श्रीगणेश का धूम्रवर्ण नामक अवतार अहंतासुर का नाश करने के लिए लिया.

वाहन की श्रेणी में गणपति जी ने कई बार मूषक को अपना वाहन चुना. इस अवतार में भी उन्होंने मूषक को ही चुना है.पितामह ब्रह्मा द्वारा सूर्य को राज्य पद देने पर सूर्यदेव के मन में अहङ्कार हो गया, उसी समय उनको छींक आ गई और उससे अहंतासुर का जन्म हुआ. अहंतासुर शुक्राचार्य से गणेश मंत्र की दीक्षा प्राप्त कर ध्यान तथा जप करने लगा. सहस्रों वर्षों की कठिन तपस्या के बाद भगवान गणेश प्रकट हुए.

भगवान गणेश ने अहंतासुर से कहा- तुम इच्छित वर मांगो. अहंतासुर ने उनसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर राज्य, अमरत्व, आरोग्य तथा अजेय होने का वर मंगा. भगवान गणेश तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गए. अहंतासुर विषयप्रिय नामक नगर में सुख पूर्वक निवास करने लगा. अहंतासुर ने श्वशुर की सलाह और गुरु का आशीर्वाद प्राप्त कर विश्व-विजय के लिए प्रस्थान किया. सप्तद्वी पवती पृथ्वी अहंतासुर के अधिकार में हो गई, फिर स्वर्ग पर भी आक्रमण किया.

देवता, ऋषि, मुनि पर्वतों में छिपकर रहने लगे . धर्म-कर्म नष्ट हो गया. सर्वत्र पाप और अन्याय का बोलबाला हो गया. चारों तरफ से असहाय होकर देवताओं ने भगवान शंकर और ब्रह्मा की सलाह से भगवान गणेश की उपासना करना शुरू की. सात सौ वर्षों की कठिन साधना के बाद भगवान गणनाथ प्रसन्न हुए. उन्होंने देवताओं की विनती सुनकर उनका कष्ट दूर करने का वचन दिया.

उन्होंने देवर्षि नारद के माध्यम से अहंतासुर के पास समाचार भेजा कि वह श्री धूमवर्ण की शरण में आ जाये और समस्त अत्याचारों को रोक दे. इस पर दैत्यराज अहंतासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने नारद को भला बुरा कहते हुए सन्देश के अनुसार चलने से इंकार कर दिया. भगवान धूम्रवर्ण ने क्रोधित होकर असुर सेना पर अपना उग्र पाश छोड़ दिया. उस पाश ने असुरों के गले में लिपट कर उन्हें यम लोक भेजा. 

असुरों ने भीषण युद्ध की चेष्टा की, किंतु तेजस्वी पाश की ज्वाला में वह सभी जलकर भस्म हो गए. अहंतासुर ने भगवान धूम्रवर्ण के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी. संतुष्ट भगवान धूम्रवर्ण ने दैत्य को अभय कर दिया. उन्होंने उसे आदेश दिया कि जहां मेरी पूजा न होती हो, तुम वहां जाकर रहो. इसके बाद देवगणों ने श्रद्धपूर्वक धूम्रवर्ण की पुजा की.

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