बीएसएफ जवान को शहीद का दर्जा दिलाने की लंबी कानूनी लड़ाई: 30 साल बाद मिला सम्मान…

बेटे की संघर्षपूर्ण यात्रा से न्याय का रास्ता खुला, शहीद के बेटे ने हाईकोर्ट में दी याचिका

बीकानेर के मिठड़ियां गांव से जुड़े एक शहीद बीएसएफ जवान को 30 साल बाद शहीद का दर्जा मिला। यह सम्मान दिलाने के लिए शहीद के बेटे ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, जिसे आखिरकार बीएसएफ और अधिकारियों ने स्वीकार किया। यह कहानी न सिर्फ एक बेटे की कड़ी मेहनत की है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस प्रकार कानून और सिस्टम में देर से ही सही, न्याय मिल सकता है।

1993 में शहीद हुए जवान की दुखद कहानी: मिठड़ियां गांव के रहने वाले जेठाराम बिश्नोई ने मात्र 20 साल की उम्र में 1989 में बीएसएफ में भर्ती होकर देश की सेवा शुरू की थी। 1993 में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास इच्छामती नदी में पेट्रोलिंग के दौरान उनका निधन हो गया। वे नदी में गिरकर डूब गए, और उनकी शहादत के बाद बीएसएफ के अधिकारी उनके घर अस्थियां लेकर आए थे। इस मौके पर शहादत का प्रमाण पत्र तो मिला, लेकिन शहीद का दर्जा देने में अधिकारियों ने लंबा वक्त लिया।

हाईकोर्ट में पिता के सम्मान की लड़ाई: शहीद के बेटे ने तब तक हार नहीं मानी, जब तक उन्हें और उनके पिता को उचित सम्मान नहीं मिला। वह उस समय अपनी मां के गर्भ में था जब उसके पिता ने शहादत दी थी। बेटे ने बीएसएफ के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की, और शहीद का दर्जा पाने के लिए कड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी। इस संघर्ष के बाद अधिकारियों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शहीद का दर्जा प्रदान किया।

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