संगोष्ठी का आयोजन: सीएलसी ऑडिटोरियम में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा संगोष्ठी का आयोजन

स्वाधीनता का अमृत महोत्सव कार्यक्रम शृंखला के अंतर्गत अखिल भारतीय साहित्य परिषद् (राजस्थान) की सीकर इकाई द्वारा ‘भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में स्वामी विवेकानन्द की भूमिका’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन सीएलसी ऑडिटोरियम, कर्मस्थली, पिपराली रोड़, सीकर में किया गया. कार्यक्रम में सीकर इकाई अध्यक्ष मांगीलाल शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वामी विवेकानंद एक व्यक्ति और विचार नहीं अपितु भारत की आत्मा है.

साहित्यकार डॉक्टर चंद्रप्रकाश महर्षि ने स्वामी जी व रामकृष्ण परमहंस की परिचर्चा करते हुए उद्धृत किया कि गुरू को योग्य शिष्य व ज्ञानपिपासु को योग्य गुरू की तलाश थी, जो उनके परस्पर मिलन से पूर्ण हुई. जिसके परिणामस्वरूप स्वामी विवेकानंद जैसा धर्मयोद्धा निखरकर आया जो आज भी राष्ट्रवादियों का आदर्श है. उन्होंने अपने विचारों में यह कहा था कि मैं ऐसे धर्म का प्रचार करना चाहता हूँ, जिसमें केवल और केवल मनुष्य तैयार होते हैं. मैं किसी भी धर्म का विरोधी नहीं हूं.

सीकर इकाई संरक्षक पवन कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि बालकों को स्वामी जी के जीवन चरित्र और उनके साहित्य से परिचय करना चाहिए, जिससे उनमें संस्कार पैदा हो. जिलाध्यक्ष सज्जन सिंह ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता वैश्विक स्तर पर सिद्ध कर स्वधर्म पर गौरव करने का आह्वान किया जिसने हीनता बोध से मुक्त कर देशवासियों को स्वाधीनता के लिए प्रेरित भी किया. अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के गठन व उद्देश्यों की चर्चा करते हुए उन्होंने भारतीय साहित्य में छिपे गूढार्थ को समझ कर जन सामान्य तक ले जाना साहित्य साधकों का कार्य बताया. 

सीएलसी निदेशक एवं जिला संरक्षक, परिषद इंजि. श्रवण चौधरी  ने गुरू-शिष्य परम्परा की महत्ता बताते हुए साहित्य परिषद् को गुरू की भूमिका में आकर समाज को जागृत करने का आह्वान किया. विभाग संयोजक जियाराम सारण ने अपने उद्बोधन में बताया कि हम सभी महापुरुषों की जयंती इसलिए मनातें है, जिससे संस्थाओं के साथ आज की युवा पीढ़ी भी जागृत हो. उन्होने सीएलसी संस्था में रोज विद्यार्थियों द्वारा हनुमान चालीसा पाठ करने की प्रशंसा की. 
कार्यक्रम का प्रभावी मंच संचालन चिंतन शशि शर्मा द्वारा किया गया. कार्यक्रम में अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे. 

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