शिक्षक दिवस पर विशेष : सीकर के लक्ष्मी नारायण प्राचीन गुरुकुल की तर्ज पर दे रहे हैं विद्यार्थियों को शिक्षा….
प्राचीनकाल में स्कूल की जगह गुरुकुल हुआ करते थे जिनमें बच्चों को धर्मशास्त्रों के साथ साथ शस्त्र विज्ञान का ज्ञान दिया जाता था और इन गुरुकुलों या आश्रमों में रहकर बच्चे मुफ्त में शिक्षा लेते थे। लेकिन बदलते वक्त के साथ शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव आया और गुरुकुलों की जगह अब स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर बन गए और शिक्षा ने व्यावसायिक रूप ले लिया। शिक्षा इतनी महंगी हो गई कि आम आदमी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में भी असमर्थ है। ऐसे में आज भी एक गुरुकुल प्राचीन गुरुकुल की तर्ज पर चल रहा है जहां बच्चों को पूरी तरह से फ्री में शिक्षा दी जा रही है।
गुरु का दर्जा भगवान से भी बढ़कर है। लेकिन आज के युग में ऐसा गुरु मिलना मुश्किल है जो बिना किसी प्रतिफल के शिक्षा देता हो। लेकिन एक ऐसा भी गुरु जो न केवल बिना किसी प्रतिफल के नि:शुल्क शिक्षा की ज्योति जलाये हुए है, वरन् अपने स्वयं की बचत भी इन्हीं गरीब छात्रों की शिक्षा पर व्यय कर रहे हैं।
सीकर कोचिंग सिटी के रूप में पूरे देश में अग्रणी शहर के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने जा रहा है। देश के नामी कोचिंग सेंटर्स की भव्य और विशाल अट्टालिकाएं सीकर शहर की पहचान बनती जा रही हैं। इन्हीं के बीच सीकर के जयपुर रोड स्थित रीको इण्डस्ट्रियल एरिया में जोशी शॉर्टहैंड प्रशिक्षण केंद्र स्टेनो की नि:शुल्क शिक्षा के लिए पूरे देश भर में मशहूर है। स्टेनोमैन के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मीनारायण चेजारा 48 वर्ष से स्टेनो की नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं जो आज गरीब विद्यार्थियों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं।
जोशी शॉर्टहैंड इंस्टीट्यूट की नींव 68 वर्षीय लक्ष्मीनारायण चेजारा ने 1976 में रखी। चेजारा सीकर केन्द्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक पद से 2016 में सेवानिवृत्त हुए हैं। अपने सेवाकाल में अपने वेतन का आधा हिस्सा ये अपने छात्रों की पढ़ाई पर ही खर्च करते रहे हैं। 48 वर्ष में इनसे लगभग 15 हजार छात्र नि:शुल्क शॉर्टहैंड की शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं जिनमें से लगभग एक हजार विद्यार्थी सरकारी सेवा में सेवारत हैं। इनके शिष्य भारतीय संसद, सर्वोच्च न्यायालय, राजस्थान उच्च न्यायालय, राजस्थान विधान सभा, राज्य व केन्द्रीय सचिवालय, राजस्थान सरकार के विभिन्न राजकीय कार्यालय, भारतीय सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीमा सुरक्षा बल व विभिन्न राज्यों के सरकारी विभागों में सेवारत हैं। यही कारण है कि आज इनके इंस्टीट्यूट में राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों के भी गरीब विद्यार्थी शॉर्टहैंड का प्रशिक्षण प्राप्त करने आते हैं।
68 वर्ष की उम्र में भी इनकी दिनचर्या प्रात: 4 बजे से प्रारंभ हो जाती है। प्रात: 5 बजे से इनकी क्लास प्रारंभ हो जाती है। दूर-दूर से सैकड़ों छात्र इनकी कक्षा में प्रात: 5 बजे से पूर्व ही पहुंच जाते हैं। इनकी कक्षा का अनुशासन बहुत सख्त है। इनके पास लगभग 200 विद्यार्थियों की बैठने की जगह है, लेकिन देर से आने वाले विद्यार्थियों को जगह नहीं मिलने के कारण उस दिन वापस घर ही जाना पड़ता है। 68 वर्ष की उम्र में भी ये बिना किसी माइक के अपनी सुमधुर वाणी में छात्रों को डिक्टेशन देते हैं तो इनकी आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती है। इनकी वाणी का ओज और छात्रों के प्रति समर्पण, वात्स्ल्य भाव व स्नेह देखते ही बनता है।
पूरे शेखावाटी क्षेत्र में नि:शुल्क शिक्षा के कारण ये किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और हर कोई इनकी शिक्षा के लिए इनकी तारीफ किये बिना नहीं रहता।
सीकर शहर के राधाकिशनपुरा में रहने वाले चेजारा आज भी बहुत ही सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इनके शिष्य आज आलीशान जीवन जी रहे हैं, लग्जरी गाडि़यों के मालिक हैं व वैभवपूर्ण जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं लेकिन एक छोटे से मकान में रहने वाले चेजारा अपने जीवन से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। आज भी अपने घर से 4 किलोमीटर दूर कक्षा लेने पैदल ही जाते हैं और पैदल ही आते हैं। सर्दी-गर्मी-बारिश के बावजूद बिना कोई अवकाश लिए ये अपने कर्तव्य पर उपस्थित रहते हैं।
लक्ष्मीनारायण चेजारा को यह प्रेरणा अपने गुरू श्री ओमप्रकाश जोशी से मिली है। बेहद गरीब परिवार में जन्म लेने वाले व ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकले चेजारा को इनके गुरू ओमप्रकाश जोशी ने ही नि:शुल्क शिक्षा-दीक्षा प्रदान की और इसी से प्रेरित होकर ये आजीवन नि:शुल्क शिक्षा का संकल्प लेकर अपने गुरू के प्रति गुरूदक्षिणा व कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं।
सीकर जिले के न्यायालयों में पीए पद पर कार्यरत अधिकांश स्टेनोग्राफर इन्हीं के छात्र हैं। इसके अलावा शेखावाटी क्षेत्र के तमाम विभागों में अधिकांश स्टेनोग्राफर इन्हीं से प्रशिक्षित होकर सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। इनके छात्रों में अपने गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा है और वे कहते हैं कि कलियुग में हमारे गुरु से बढ़कर कोई संत नहीं है। जो गुरु अपने शिष्यों को सिर्फ नि:शुल्क ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि अपना समस्त जमा धन भी इन्हीं गरीब विद्यार्थियों पर खर्च कर दिया तो ऐसा नि:स्वार्थ और प्रेरणादायी व्यक्तित्व आज के जमाने में दुर्लभ है।
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